एक बार की बात है, नीले आकाश के नीचे और गहरे नीले समुद्र के किनारे, एक महान योद्धा, हनुमान, जो अपनी अद्भुत शक्ति और भक्ति के लिए जाने जाते थे, रहते थे। हनुमान कोई साधारण बंदर नहीं थे; वे पवन देव के पुत्र थे और उनमें असाधारण क्षमताएँ थीं। उनका शरीर वज्र की तरह मजबूत था, और उनका हृदय श्री राम के प्रेम से भरा हुआ था। उनकी पूंछ लंबी और शक्तिशाली थी, जो अक्सर उनके चारों ओर लिपटी रहती थी, जैसे कि यह उनकी पहचान का एक अभिन्न हिस्सा हो।
हनुमान का चेहरा हमेशा मुस्कान से भरा रहता था, और उनकी आँखें शरारत और बुद्धि की चमक से चमकती थीं। वे एक सुनहरी मुकुट पहनते थे, जो उनके सम्मान और साहस का प्रतीक था। उनकी वीरता की कहानियाँ हर घर में सुनाई जाती थीं, और बच्चे उन्हें अपना आदर्श मानते थे।
एक दिन, हनुमान को एक महत्वपूर्ण कार्य सौंपा गया। श्री राम की पत्नी, सीता, को रावण नामक एक क्रूर राक्षस ने लंका नामक एक दूर देश में अपहरण कर लिया था। राम, अपनी पत्नी को वापस लाने के लिए व्याकुल थे और उन्होंने हनुमान को सीता की खोज करने और उन्हें सुरक्षित वापस लाने का आदेश दिया।
हनुमान ने राम के चरणों में झुककर उनका आशीर्वाद लिया और तुरंत अपनी यात्रा शुरू करने के लिए तैयार हो गए। उन्होंने अपनी कमर के चारों ओर अपनी पूंछ लपेटी, अपनी गदा उठाई, और समुद्र की ओर चल पड़े। समुद्र विशाल और गहरा था, और लहरें गरज रही थीं, लेकिन हनुमान का संकल्प चट्टान की तरह दृढ़ था।
उन्होंने एक ऊँचे पर्वत पर चढ़ाई की, अपनी मांसपेशियों को खींचा, और एक विशाल छलांग लगाई। हनुमान हवा में उड़ गए, मानो कोई पक्षी हो, और समुद्र के ऊपर से उड़ने लगे। उनकी उड़ान अद्भुत थी, और सभी देवता उन्हें आशीर्वाद दे रहे थे।
समुद्र के बीच में, सुरसा नामक एक विशाल नागिन रहती थी। सुरसा अपनी जादुई शक्तियों के लिए जानी जाती थी और वह अक्सर यात्रियों को भ्रमित करती थी। देवताओं ने हनुमान की परीक्षा लेने का फैसला किया और सुरसा को उनके रास्ते में भेज दिया।
सुरसा ने अपना मुँह खोला और हनुमान को निगलने की कोशिश की। हनुमान समझ गए कि यह एक परीक्षा है, इसलिए उन्होंने विनम्रता से कहा, "माँ, मुझे राम के कार्य को पूरा करने दो। मैं वापस आकर तुम्हारे मुँह में प्रवेश करूँगा।"
सुरसा ने कहा, "नहीं, मुझे तुम्हें अभी निगलना होगा। यह मेरा कर्तव्य है।" हनुमान जानते थे कि उन्हें अपनी बुद्धि का उपयोग करना होगा। उन्होंने तुरंत अपने शरीर को एक छोटे से अंगूठे के आकार में सिकोड़ लिया। सुरसा ने उन्हें निगल लिया, लेकिन अगले ही पल, हनुमान उसके मुँह से बाहर निकल आए और अपने असली आकार में वापस आ गए।
सुरसा चकित हो गई। उसने हनुमान को आशीर्वाद दिया और कहा, "तुमने यह परीक्षा पास कर ली है। अब तुम आगे बढ़ सकते हो।" हनुमान ने सुरसा को धन्यवाद दिया और अपनी यात्रा जारी रखी।
आगे बढ़ते हुए, हनुमान को एक और बाधा का सामना करना पड़ा। सिंहिका नामक एक राक्षसी समुद्र में रहती थी और वह उड़ते हुए जीवों की छाया को पकड़ लेती थी। जैसे ही हनुमान उसके ऊपर से उड़े, सिंहिका ने उनकी छाया पकड़ ली और उन्हें नीचे खींच लिया।
हनुमान समझ गए कि उन्हें इस राक्षसी से लड़ना होगा। उन्होंने अपने नाखूनों से सिंहिका के पेट को चीर दिया और उसे मार डाला। फिर, वे फिर से उड़ने लगे।
अंत में, हनुमान लंका पहुँच गए। लंका एक सुंदर शहर था, जिसके चारों ओर सोने की दीवारें थीं। शहर का प्रवेश द्वार बहुत बड़ा और भव्य था, और इसकी रक्षा लंकिनी नामक एक भयंकर राक्षसी कर रही थी।
लंकिनी ने हनुमान को रोका और पूछा, "तुम कौन हो और तुम यहाँ क्या कर रहे हो?"
हनुमान ने कहा, "मैं राम का दूत हूँ और मैं सीता की खोज में यहाँ आया हूँ।" लंकिनी ने हनुमान को अंदर जाने से मना कर दिया और उन पर हमला कर दिया। हनुमान ने लंकिनी के साथ एक भयंकर युद्ध किया। उन्होंने अपनी गदा से उस पर प्रहार किया और उसे पराजित कर दिया।
लंकिनी ने हार मान ली और कहा, "मैंने सुना है कि एक दिन एक वानर आएगा और मुझे पराजित करेगा। यह मेरी हार की शुरुआत होगी। अब तुम शहर में प्रवेश कर सकते हो।"
हनुमान लंका में प्रवेश कर गए। उन्होंने पूरे शहर में सीता की खोज की। उन्होंने रावण के महल में प्रवेश किया और अशोक वाटिका नामक एक सुंदर बगीचे में पहुँचे। वहाँ, उन्होंने सीता को एक पेड़ के नीचे उदास बैठी हुई पाया।
सीता कमजोर और दुखी लग रही थीं। रावण उन्हें लगातार शादी करने के लिए मजबूर कर रहा था, लेकिन सीता ने इनकार कर दिया था। हनुमान ने सीता के सामने प्रणाम किया और उन्हें राम की अंगूठी दी। सीता अंगूठी देखकर बहुत खुश हुईं और उन्हें विश्वास हो गया कि हनुमान वास्तव में राम के दूत हैं।
हनुमान ने सीता को राम का संदेश दिया और उन्हें आश्वासन दिया कि राम जल्द ही उन्हें बचाने आएँगे। सीता को हनुमान से मिलकर बहुत शांति मिली।
हनुमान ने सीता से विदा ली और रावण को सबक सिखाने का फैसला किया। उन्होंने अशोक वाटिका को नष्ट करना शुरू कर दिया और कई राक्षसों को मार डाला। रावण के पुत्र, अक्षयकुमार, ने हनुमान से युद्ध किया, लेकिन हनुमान ने उसे भी मार डाला।
रावण क्रोधित हो गया और उसने अपने सबसे शक्तिशाली योद्धा, मेघनाद, को हनुमान को पकड़ने के लिए भेजा। मेघनाद ने ब्रह्मास्त्र नामक एक शक्तिशाली हथियार का उपयोग किया और हनुमान को बंदी बना लिया।
हनुमान को रावण के दरबार में ले जाया गया। रावण ने हनुमान से पूछा, "तुम कौन हो और तुमने मेरे राज्य में क्या किया है?"
हनुमान ने निर्भीकता से उत्तर दिया, "मैं राम का सेवक हूँ और मैं यहाँ सीता की खोज में आया हूँ। मैंने तुम्हारे राज्य को नष्ट कर दिया क्योंकि तुमने एक निर्दोष महिला का अपहरण किया है।"
रावण हनुमान के साहस से प्रभावित हुआ, लेकिन उसने उन्हें दंडित करने का फैसला किया। उसने अपने सैनिकों को हनुमान की पूंछ में आग लगाने का आदेश दिया। सैनिकों ने हनुमान की पूंछ में आग लगा दी, लेकिन हनुमान ने कोई दर्द नहीं दिखाया।
हनुमान ने अपनी जलती हुई पूंछ से पूरे लंका शहर में आग लगा दी। सोने की लंका जलने लगी, और रावण और उसके राक्षस भयभीत हो गए। हनुमान ने लंका को पूरी तरह से जलाकर राख कर दिया और फिर समुद्र में कूद गए, अपनी आग बुझा दी।
हनुमान सीता के पास वापस गए और उन्हें बताया कि उन्होंने लंका को जला दिया है। सीता ने हनुमान को आशीर्वाद दिया और उन्हें राम के पास वापस जाने के लिए कहा।
हनुमान राम के पास वापस लौट आए और उन्हें सीता का संदेश दिया। उन्होंने राम को लंका में जो कुछ भी हुआ, उसके बारे में विस्तार से बताया। राम हनुमान की वीरता और भक्ति से बहुत प्रसन्न हुए।
राम ने अपनी वानर सेना के साथ लंका पर आक्रमण करने का फैसला किया। हनुमान राम की सेना में सबसे आगे थे और उन्होंने रावण और उसकी राक्षसी सेना को हराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
अंत में, राम ने रावण को मार डाला और सीता को बचाया। सीता और राम फिर से मिल गए, और उन्होंने एक खुशहाल जीवन बिताया। हनुमान हमेशा राम के सबसे प्रिय भक्त बने रहे और उनकी वीरता की कहानियाँ आज भी सुनाई जाती हैं।
हनुमान ने अपनी भक्ति, शक्ति और बुद्धि से यह साबित कर दिया कि सच्ची भक्ति और साहस से हर मुश्किल को पार किया जा सकता है। उनकी कहानी हमें सिखाती है कि हमें हमेशा अपने सिद्धांतों पर अटल रहना चाहिए और कभी भी अन्याय के सामने नहीं झुकना चाहिए।
इस कहानी का अंत हमें यह भी याद दिलाता है कि अच्छाई हमेशा बुराई पर विजयी होती है, और जो लोग दूसरों की मदद करते हैं, उन्हें हमेशा सम्मान और प्रेम मिलता है। हनुमान की यात्रा एक प्रेरणादायक उदाहरण है कि कैसे एक छोटा सा जीव भी अपनी शक्ति और समर्पण से महान कार्य कर सकता है।
नैतिकता और विषय हनुमान की अद्भुत यात्रा: सीता की खोज में
- कहानी की नैतिकता है सच्ची भक्ति और साहस से हर मुश्किल को पार किया जा सकता है। (True devotion and courage can overcome any difficulty.)
- कहानी का विषय है साहस और भक्ति (Courage and Devotion)
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